Tuesday, April 2, 2013

हमारे बीच



--- उन थोड़े से फूलों के लिए 
    जिनकी महक 
    अभी 
    बाकी है--- हमारे बीच!

--- उस नन्ही बिटिया के लिए 
     जिसके सपनों में
     किस्से कहानियों की तरह 
     ख़त्म हुए हम तुम 
     हर बार पुनर्जन्म लेते हैं!

--- उस गर्व के लिए जो,
    हमारी अलग अलग अस्मिता 
    अपने दोनों हाथों में थामे 
    तनी हुई गर्दन के साथ
    खड़ा रहता है-- हमारे बीच!

--- हमें लौटना ही होगा!
    भीतर अंधेरों को पार कर 
    बहने वाले अमृतजल के 
    चिरस्थाई सोते के पास 
    जहाँ सारी विषमताएं 
    गल रही हैं, धीरे धीरे।


3 जुलाई 1985 

शैलेन्द्र तिवारी 

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