--- उन थोड़े से फूलों के लिए
जिनकी महक
अभी
बाकी है--- हमारे बीच!
--- उस नन्ही बिटिया के लिए
जिसके सपनों में
किस्से कहानियों की तरह
ख़त्म हुए हम तुम
हर बार पुनर्जन्म लेते हैं!
--- उस गर्व के लिए जो,
हमारी अलग अलग अस्मिता
अपने दोनों हाथों में थामे
तनी हुई गर्दन के साथ
खड़ा रहता है-- हमारे बीच!
--- हमें लौटना ही होगा!
भीतर अंधेरों को पार कर
बहने वाले अमृतजल के
चिरस्थाई सोते के पास
जहाँ सारी विषमताएं
गल रही हैं, धीरे धीरे।
3 जुलाई 1985
शैलेन्द्र तिवारी
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