खिड़की के पार है -
गुलमोहर
और
उसके नीचे मुस्कुराती खड़ी हो तुम
तुम्हारा हाथ थामे खड़ी है
गुलाबी गालों वाली हमारी नन्ही सी गुलथुल बिटिया
खिड़की के पार है -
गुज़रता हुआ साल
अपने लम्बे हाथ पैंट की जेबों में डाले
सहमा सा वापस जा रहा है!
बाहर आसमान में -
पर फैलाये घूम रहा है रोशनी का एक झुण्ड!
मैं
दरवाज़ा खोलता हूँ,
शोर के बीच से बाहर निकलकर
तुम्हारे गुलाबी लिबास और बिटिया की नीली फ्रॉक
के बीच तक चला आता हूँ
और
हरियाला रास्ता हमारे पावों के नीचे से निकलकर
दूर बगीचे के छोर की तरफ आगे को
चल पड़ता है।
-15अप्रैल 1981
शैलेन्द्र तिवारी
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