Friday, April 5, 2013

तुम्हारी खुशबू


१ 
रात भर लिपटी रही खुशबू 
तुम्हारी चन्दन बाँहों की
और मेरा सीना महकता रहा।
दिन भर रोशनी चुभती रही आँखों में 
और मैं 
तुम्हारे रेशमी बालों में सर गड़ाकर  
सोने का बहाना ढूँढता रहा।
२ 
समुद्र के बाँध जैसा लहरों से 
टकराता है बदन 
इन लहरों ने मेरा रोम रोम डुबो लिया है 
और अब तुम्हें भी डुबो लेना चाहती हैं।
पुरानी कमज़ोर दीवार सा 
टूट गया है 
अजनबीपन का पुल।
यह अमृतजल एक ठंडी ताज़गी से 
अब हमें छूता है 
हम अभी और डूबेंगे 
इस समुद्र की नीली गहराई में 
अपनी आत्माओं के गल जाने तक।
३ 
एक बियाबान था जो अचानक 
बदल गया है 
अब इसमें ढेर सारे परिचित कोने हैं,
धूप के नन्हे नन्हे टुकड़े हैं 
जिन्हें गोदी में भरा जा सकता है।
खिलखिलाती हुई शाम है जिसको 
बाहों में भरकर प्यार से दुलराया 
जा सकता है 
और 
मीलों तक फैले खूबसूरत फूलों के 
झुण्ड हैं 
जिन्हें 
जी भरकर 
चूमा जा सकता है।



1 फरवरी 1980 



शैलेन्द्र तिवारी 

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