Friday, April 5, 2013

आँख नम न किया करो



यह शहर है 
अनजान ख़ामोशी का
यहाँ आँख नम 
न किया करो!
बस हँसा करो
और दुआ करो 
कि ये धूप हमसे 
जुदा न हो!
२ 
न तो हम यहाँ 
न तो तुम वहाँ 
कभी ढूंढें किसी 
उदास पल को 
न भूलें अपनी गर्मियां 
न छिपाएं अपनी उजास को!
३ 
बड़े जतन से
हमें खोजती 
सर्द हवाएं 
सुबह शाम 
बड़े प्यार से 
हमें ढूंढते 
कई दोस्त 
जो हैं गुमनाम!
४ 
हमें अपनी तरह से 
मुस्कुरा के बुलाते हैं 
ये कांटे और ये फूल भी लेके हमारा नाम 
हमारे पास तक चले आते हैं !
५ 
जो किसी पल हमारे दरमियाँ 
यदि कोई दरार आ गिरे 
यदि बहक के कोई कदम कभी 
हमारे बीच लड़खड़ा पड़े 
तुम संभलना
न सहमना 
तुम्हारे पीछे ही खड़ा हूँ मैं 
तुम्हारे हर कदम को सहेजता 
चट्टान सा अड़ा हूँ मैं !
६ 
जो अँधेरे आएं कहीं कभी 
तुम्हारे पास किसी परछाई के भी 
उन्हें लेने न दूंगा कोई जगह 
तुम्हारे साथ साथ चल रहा 
तुम्हारे भीतर की रोशनी में घुला मैं 
रोशनी का वजूद हूँ 
हर पल यहींमौजूद हूँ !

यह शहर है 
अनजान ख़ामोशी का
यहाँ आँख नम न किया करो।

4 अप्रैल 2013 
काठमांडू 


शैलेन्द्र तिवारी   
  
    

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