१
यह शहर है
अनजान ख़ामोशी का
यहाँ आँख नम
न किया करो!
बस हँसा करो
और दुआ करो
कि ये धूप हमसे
जुदा न हो!
२
न तो हम यहाँ
न तो तुम वहाँ
कभी ढूंढें किसी
उदास पल को
न भूलें अपनी गर्मियां
न छिपाएं अपनी उजास को!
३
बड़े जतन से
हमें खोजती
सर्द हवाएं
सुबह शाम
बड़े प्यार से
हमें ढूंढते
कई दोस्त
जो हैं गुमनाम!
४
हमें अपनी तरह से
मुस्कुरा के बुलाते हैं
ये कांटे और ये फूल भी लेके हमारा नाम
हमारे पास तक चले आते हैं !
५
जो किसी पल हमारे दरमियाँ
यदि कोई दरार आ गिरे
यदि बहक के कोई कदम कभी
हमारे बीच लड़खड़ा पड़े
तुम संभलना
न सहमना
तुम्हारे पीछे ही खड़ा हूँ मैं
तुम्हारे हर कदम को सहेजता
चट्टान सा अड़ा हूँ मैं !
६
जो अँधेरे आएं कहीं कभी
तुम्हारे पास किसी परछाई के भी
उन्हें लेने न दूंगा कोई जगह
तुम्हारे साथ साथ चल रहा
तुम्हारे भीतर की रोशनी में घुला मैं
रोशनी का वजूद हूँ
हर पल यहींमौजूद हूँ !
७
यह शहर है
अनजान ख़ामोशी का
यहाँ आँख नम न किया करो।
4 अप्रैल 2013
काठमांडू
शैलेन्द्र तिवारी
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