पीपल के पत्तों के
खड़खड़ाने से
एहसास होता है अगणित पातों से
टुकुर टुकुर ताक रही हो
तुम मां
तुम्हारी हंसी ही तो है
नन्हे शिशु के
रक्ताभ होंठों पर
और खनकती है
कानों में मेरे जहाँ जाता हूँ
तुम कहाँ ओझल हुई
मेरी आँखों से
अब भी जब कोई छोटा सा तारा
चाँद के किनारे पर दीख जाता है
याद आता है बचपन
तुम्हारी चांदनी के साये ही में
मैंने चलना सीखा मां
रातों के डरावने जंगल में
तुम्हारे होने का एहसास
बना रहता है मां
और मुझे कभी हारने नहीं देता
तुम्हारी पौरुष से भरी आँखें
ही तो हैं
सजी हैं मेरे माथे पर
और हरदम बेहिचक
किसी भी कठिन समय का
सामना करने को तैयार रखती है
मौसम बदलते हैं
पतझड़ से सावन
सर्द रातों से लू भरी दोपहर तक
तुम्हारी प्रार्थनाओं की बुदबुदाहट
मुझे सुरक्षित रखती है
मैंने तुम्हें खोया नहीं मां
मैंने पाया है तुम्हें
तुम्हारे ही अनंत रूपों में
अनंत आकाश की
अनंत गहराइयों में
चकित हूँ मैं
रोशनी का समुद्र है
मां
तुम्हारे तेजोमय रूप की चकाचौंध में
मेरी आँखें नहीं खुल रही हैं
और मैं तुम्हें प्रणाम करने को
किसी ओर शीश भी नहीं झुका सकता
नमन है तुम्हें मां
आत्मा की अनंत गहराइयों से
दिशाओं के दशोद्वारों के पार तक।
शैलेन्द्र तिवारी
My Prenams to Ma
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ReplyDeleteMy Prenams on Mothers day
ReplyDeleteMY Pranams to Ma you are always with us 💖
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