हमने खोजे
इस जंगल में
फूल और
पत्तों के गहने
डाली डाली
खोजी कोयल।
सूरज आग और
धरती को
खूब रिझाया
बर्फीली चोटी
से लेकर
सागर की गहराई तक
हम दौड़े आये।
सपनों के संग
उड़ते उड़ते
थके नहीं हम
और न टूटे,
ऋतु के पंखों को
आगे पीछे देखा हमने।
हम थामे रहे कसकर
बाँहों में अपना साथ
जंगल के ओर छोर तक
हम न छूटे
अंधड़ और तपन में
इस जंगल में हमने साथ निभाया।
हमने क्या खोया क्या पाया?
१७ अप्रैल २ ० ० २
शैलेन्द्र तिवारी
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