Friday, March 29, 2013

क्या खोया क्या पाया



हमने खोजे 
इस जंगल में 
फूल और 
पत्तों के गहने 
डाली डाली 
खोजी कोयल।
सूरज आग और
धरती को
खूब रिझाया 
बर्फीली चोटी 
से लेकर 
सागर की गहराई तक 
हम दौड़े आये।
सपनों के संग 
उड़ते उड़ते 
थके नहीं हम 
और न टूटे,
ऋतु के पंखों को 
आगे पीछे देखा हमने।
हम थामे रहे कसकर 
बाँहों में अपना साथ 
जंगल के ओर छोर तक 
हम न छूटे 
अंधड़ और तपन में 
इस जंगल में हमने साथ निभाया।
हमने क्या खोया क्या पाया?

१७ अप्रैल २ ० ० २ 
शैलेन्द्र तिवारी 


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