Friday, March 29, 2013

मैं तुम्हें ये सब देता हूँ


       


मैं ये सब तुम्हें देता हूँ --
ये फूलों वाले रूमाल 
ये खूबसूरत रंगों वाले 
ढेर सारे गुलाब 
और मेरी अलमारी भर किताबें।

मेरी मोटे शीशों वाली ऐनक 
मेरी आँखों की उदास झील 
मेरा सख्त चेहरा 
मेरा हवाओं जैसा बेचैन 
दौड़ने वाला दिल 
मेरा परेशान दिमाग 
और मेरी आसपास तक फैली 
बाहें भी मैं तुम्हें देता हूँ।

धरती को इस छोर से उस छोर 
तक नाप सकने वाली मेरी 
मज़बूत टांगें 
दूर तक दिखाई देने वाला 
मेरे अजनबीपन का जंगल 
मेरे अकेले कमरे की 
खिड़की के नीचे वाली 
रजनीगंधा की छोटी सी क्यारी 
डायरी भर मेरी अधूरी कवितायेँ 
मेरे पुराने कोट की 
मर्दानी गंध और मेरी 
ऊलजलूल रंगों वाली 
पेंटिंग्स।

ये सब भी मैं तुम्हें देता हूँ 
और बदले में 
तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही 
मैं तुम्हारा हाथ चूम लूँगा 
क्योंकि 
तुम्हारे हरदम चुप रहने के बावजूद भी 
मैं जानता हूँ कि तुम मुझे 
प्यार करती हो।


-- १५ फरवरी १९८० 

शैलेन्द्र तिवारी  

1 comment:

  1. I just love this poem. The sensitivity and the lucid expression. Beautiful.

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