हो सकता है
मिट्टी में ही
छुपी हो खुशबू
सारे फूलों की
ऐसा भी हो सकता है
कि आकाश ही
अपने दुशाले में बाँध
जीवन के सारे टुकड़े
हमारे भीतर आकर
फैल गया हो
संभव है
कि समुद्र ही उफनता हो
ज्वार भाटे सा हमारे भीतर
और बाहर
अपनी निस्सीम अनंतता
समेटे चुपचाप खड़ा हो
या फिर
कुहराए प्रकाश कण ही
बना रहे हों यह अंधियारा
इस माया नगरी में
सब कुछ सम्भव है
असम्भव कुछ भी नहीं
हो सकता है
प्रेम भी सदियों पुरानी
किसी पथराली चट्टान पर
खुदा कोई नाम भर हो
जिसकी लिपि अभी खोजी
जानी है।
3 जुलाई 2000,
भोपाल
We are enveloped in time
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