Tuesday, November 19, 2013

नदी























मुझे मत रोको 
इस नदी के अंत तक जाना है मुझे 
मुझे इसका साथ देना है 
दुर्गम घाटियों में , ठहरे हुए समतल पर ,
बहते हुए झरनों में। 

इसकी धारा का हर कण 
इसके ठंडे जल का सुखद स्पर्श ,
इसका वेग , सब कुछ 
आत्मसात करना है। 

मुझे प्यार है इस नदी से 
इसके साथ डूबने उतराने में 
मैं पुलकित होता हूँ
नदी एक जीवन है 
जिसे मैं तुम्हारा नाम देता हूँ 
और जिसमें मेरा नाम 
घुलता जा रहा है। 



2 नवंबर 1980 ,
भोपाल 

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