मुझे मत रोको
इस नदी के अंत तक जाना है मुझे
मुझे इसका साथ देना है
दुर्गम घाटियों में , ठहरे हुए समतल पर ,
बहते हुए झरनों में।
इसकी धारा का हर कण
इसके ठंडे जल का सुखद स्पर्श ,
इसका वेग , सब कुछ
आत्मसात करना है।
मुझे प्यार है इस नदी से
इसके साथ डूबने उतराने में
मैं पुलकित होता हूँ
नदी एक जीवन है
जिसे मैं तुम्हारा नाम देता हूँ
और जिसमें मेरा नाम
घुलता जा रहा है।
2 नवंबर 1980 ,
भोपाल
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