१
ऐसा लगा
धवल रथ का वह रथी
श्वेत वस्त्रों में
इस निपट सुनसान मैदान
से होकर अभी अभी गुज़रा हो।
२
कहीं कोई
आवाज़ नहीं
निःशब्द
उसके पैरों के
कोई आधे अधूरे निशान भी
नहीं हैं वहां।
३
वह इस तरह
से आया
और
इस तरह से चला गया
जैसे वह
वहां आया ही नहीं था।
४
उसकी बस्ती की
सीधी सपाट सड़क
उसकी ऊंचाइयों तक
जाकर ख़त्म हो जाती है
उसके रिश्ते नाते
उसके गाय बैल
उसकी घंटियाँ
और उसके पूँछ हिलाने वाले कुत्ते
सबके सब
आश्चर्य करते हैं
कि वह इस तरह से
कैसे जा सकता है।
५
वहां भोर की
सुगबुगाहट में
कहीं कोई फूल
खिलने को आतुर है
वहां सांझ
आखिरी किरण के
जाने के पहले
थरथरा कर बस
पंखुरियाँ बिखेरने ही
वाली है,
स्याह रात है
घोर अमावस
और
न थकने वाले
जादुई पाँव
एक एक कदम
जैसे एक जनम
और
एक अधूरी इच्छा।
६
रास्ता है कि
दिन रात की
जुगलबंदी में
गाया जाने वाला
अंतहीन राग
जो कभी ख़त्म नहीं होता
गूंजता है
अनहद में आकाश।
७
उसे ही सुनता हूँ मैं
उसे ही जानता हूँ मैं
मुझे विश्वास है
कि अभी हूँ मैं
और
वह जो बीत गया
वह भी है यहीं
और
यहीं बना रहेगा
ठीक वैसे ही
जैसे वह यहाँ था ही नहीं।
21 मई 2005, भोपाल
पापा को एक श्रद्धांजलि सुमन
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