एक राजकुमारी थी
जिसके घर
तोतों के झुण्ड
पहरा देते थे।
जिसके महल में
सोन चिरैया
मोती चुगने आती थी।
एक महल था
जिसमें एक झील थी
और
झील के किनारे
हिरणों के झुण्ड थे
जिनसे राजकुमारी
खेला करती थी।
एक दिन
एक बंजारा आया
और तोतों के झुण्ड
के बीच से
राजकुमारी को
अपनी मज़बूत बाँहों में
उठाकर ले गया।
बंजारे के साथ
हवा में उड़ती उड़ती
राजकुमारी दूर ऊँचे पहाड़
पर जमी बर्फीली चट्टान
तक पहुँच गयी।
उस अजनबी बंजारे ने
राजकुमारी को सफ़ेद बर्फ पर
लिटाकर खूब चूमा
और जादू से
उसकी आँखें बदल दीं।
अब वह
नीली आँखों वाली एक
बंजारन है
और बंजारे के साथ साथ
जंगल जंगल
पर्वत पर्वत घूमा करती है।
उनके पास कुछ भी नहीं है
बस ढेर सारा प्यार है
जिसमें धरती और आसमान
डूबे रहते हैं।
वे लोग
साथ साथ सोते गाते
और उड़ते रहते हैं
हवा में
कभी यहाँ कभी वहाँ।
और पहरेदार तोते
उनका कुछ भी
बिगाड़ नहीं पाते।
वहाँ की हवा से
कभी कभी उनका
झगड़ा होता है
और वे साथ साथ
अंधड़ को पीछे ढकेल देते हैं।
सोन चिरैया
अब भी जंगल में
उनके पास आती है
अब वह मोती नहीं
दाने चुनती है
जिससे उसका पेट नहीं
आत्मा तक भर जाती है।
एक जंगल है चन्दन का
जिसमें रहती है राजकुमारी अब
बंजारन रानी बनकर
वहाँ के खुशबूदार ज़िंदा पौधों
के साथ
और
महल के भीतर की
सारी उदास चीज़ों को
भूल चुकी है।
14 फरवरी 1980,
भोपाल
No comments:
Post a Comment